मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

Education in india and institutions

संघ के आलोक में ‘भारतीय शिक्षा’

स्रोत: न्यूज़ भारती हिंदी    

वर्तमान दौर में भारतीय शिक्षा व्यवस्था पाश्चात्य विचारों, आर्थिक अभावों, राजनीतिक प्रभावों और भ्रष्टाचार की बर्बर समस्याओं से जूझ रही है। संघ परिवार के शैक्षिक संगठन अपने योजनाबद्ध कार्यों से भारतीय जीवन मूल्यों के द्वारा इन समस्याओं को सुलझाने में लगे हैं।  
शिक्षा मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है, साथ ही वह राष्ट्र गौरव का आधारस्तंभ भी है। यही कारण है कि दुनिया के सभी देश अपने शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा प्रणाली और शैक्षिक पाठ्यक्रम को लेकर जागरूक रहते हैं। प्रत्येक देश अपने राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपने देश की शिक्षा व्यवस्था को अधिकाधिक उन्नत करने का प्रयास करते हैं। अपने भारत देश की पहचान एक ज्ञानभूमि के रूप में रही है। पर वर्तमान दौर में भारतीय शिक्षा व्यवस्था अपने ही देश के पाश्चात्य विचार से प्रभावित शिक्षाविदों, इतिहासकारों और नीतिकारों के प्रभाव में है। साथ ही भारत की शिक्षा व्यवस्था आर्थिक अभावों, राजनीतिक प्रभावों और भ्रष्टाचार की बर्बर समस्याओं से जूझ रही है। ऐसी स्थिति में शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण कर समाज मन में कर्तव्य बोध का अलख जगाने का महान कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और संघ परिवार से जुड़े अनेक संगठन कर रहे हैं।

विद्या भारती : देश का सबसे बड़ा गैर सरकारी शिक्षा संगठन 

आज का बालक कल का कर्णधार है। वह देश की आशाओं का केंद्र है। वही हमारे देश, धर्म एवं संस्कृति का रक्षक है। उसके व्यक्तित्व के विकास में ही हमारी संस्कृति एवं सभ्यता का विकास निहित है। इसलिए बालक का नाता मातृभूमि और पूर्वजों से जोड़ना, यह शिक्षा का सीधा, सरल तथा सुस्पष्ट लक्ष्य है। लेकिनइस समय हमारी प्रचलित शिक्षण पद्धति पश्चिमी मनोविज्ञान पर आधारित है, जबकि शिक्षा तभी व्यक्ति एवं राष्ट्र के जीवन के लिए उपयोगी होगी जब वह देश के राष्ट्रीय जीवन दर्शन पर अधिष्ठित होगी। इस बात को ध्यान में रखते हुए विद्या भारती ने सनातन हिन्दू जीवन दर्शन के अधिष्ठान पर भारतीय शिक्षा दर्शन का विकास किया, जिसमें ‘शिक्षा के साथ संस्कार’ का लक्ष्य निहित है। 

स्वतंत्रता के पूर्व भारत में शिक्षा को परिवर्तन का मुख्य साधन के रूप में देखा गया। इस उद्देश्य को सार्थक करने की दिशा में देश के अनेक शिक्षाविदों, समाज सुधारकों और महात्माओं ने अतुलनीय योगदान दिया। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुयायी लाला हंसराज ने 1886 में लाहौर में ‘दयानन्द एंग्लो वैदिक विश्वविद्यालय’ (डीएवी) की स्थापना की। डीएवी के अंतर्गत आज 667 शिक्षण संस्थाएं हैं, जिनमें 461 हाईस्कूल हैं। इसी प्रकार स्वामी श्रद्धानन्द ने जहां 1901 में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना की, वहीं 1901 में ही रविन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर) ने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की, जो 1921 में विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया। भारतीय शिक्षा में महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी का भी महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने 1916 में ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ की स्थापना की।

भारतीय मनीषियों के इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए 1952 में संघ की प्रेरणा से कुछ निष्ठावान लोग शिक्षा क्षेत्र में सुधार के पुनीत कार्य में जुट गए, और उन्होंने गोरखपुर में "सरस्वती शिशु मंदिर" की आधारशिला पांच रुपये मासिक किराये के भवन में रखी। इसके बाद स्थान-स्थान पर "सरस्वती शिशु मंदिर" स्थापित होने लगे।आज लक्षद्वीप और मिजोरम को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में 86 प्रांतीय एवं क्षेत्रीय समितियां विद्या भारती से संलग्न हैं। इनके अंतर्गत कुल मिलाकर 23,320 शिक्षण संस्थाओं में 1,47,634 शिक्षकों के मार्गदर्शन में 34 लाख छात्र-छात्राएं शिक्षा एवं संस्कार ग्रहण कर रहे हैं। इनमें से 49 शिक्षक प्रशिक्षक संस्थान एवं महाविद्यालय, 2353 माध्यमिक एवं 923 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, 633 पूर्व प्राथमिक एवं 5312 प्राथमिक, 4164 उच्च प्राथमिक एवं 6127 एकल शिक्षक विद्यालय तथा 3679 संस्कार केंद्र हैं।

भारत जैसे विविधता से भरे देश में किसी भी शिक्षा संस्थान के लिए एक से अधिक राज्यों में स्कूल चलाना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। केंद्र सरकार का सबसे बड़ा शिक्षा संस्थान (सीबीएसई) से संलग्न विद्यालयों की संख्या आज 16,000 है, और इसका पाठ्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर एक समान होता है। वहीं विद्या भारती का पाठ्यक्रम राज्यनुसार होता है, उसकी भाषा भी प्रादेशिक होती है। विद्या भारती की आज नगरों और ग्रामों में, वनवासी और पर्वतीय क्षेत्रों में, झुग्गी-झोंपड़ियों में, शिशु वाटिकाएं, शिशु मंदिर, विद्या मंदिर, सरस्वती विद्यालय, उच्चतर शिक्षा संस्थान, शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र और शोध संस्थान हैं। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि विद्या भारती भारत का सबसे बड़ा गैर सरकारी शिक्षा संगठन बन गया है।

उपेक्षित झुग्गी-झोपड़ियों में विद्या भारती : भारत में झुग्गी-झोपड़ियों में कई करोड़ जनसंख्या निवास करती है। अधिकतर ये बस्तियां रेलवे लाइन तथा कल-कारखानों के आस-पास पड़ी खुली भूमि पर बस गई हैं। हमारे इस समाज के बंधुओं के परिवार के 8-10 लोग एक छोटी सी झोंपड़ी में गुजर करते हैं। विद्या भारती ने अपने इन बांधवों की बस्तियों में शिक्षा एवं संस्कार प्रदान करने की ओर ध्यान केन्द्रित किया है।

विद्या भारती ने अपने विद्यालयों से आग्रह किया कि प्रत्येक विद्यालय एक उपेक्षित बस्ती को गोद लेकर वहां "संस्कार केंद्र" (सिंगल टीचर स्कूल) खोले। विद्यालय और संस्कार केंद्र में प्रेम और आत्मीयता का सम्बन्ध स्थापित करें। विद्या भारती के इस आह्वान का सकारात्मक असर हुआ।  संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवारजी की जन्मशताब्दी के अवसर पर विद्या भारती ने "संस्कार केंद्र" खोलने के लिए विशेष अभियान लिया। वर्तमान में 3679 संस्कार केंद्र इन बस्तियों में चल रहे हैं। शिक्षा एवं संस्कारों के साथ-साथ ये संस्कार केंद्र सामाजिक समरसता, स्वास्थ्य, स्वावलंबन, संस्कृति एवं स्वदेश प्रेम का अलख जगा रहे हैं।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप)
“शिक्षा जीवन के लिए – जीवन वतन के लिए” इस सोच को छात्र जीवन में चरितार्थ करने के लिए संघ की प्रेरणा से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) की स्थापना की गई। महाविद्यालयीन छात्रों के हितों की रक्षा करनेवाला अभाविप का मुख्य उद्देश्य युवाओं के छात्र जीवन को राष्ट्रहित से जुड़े रचनात्मक कार्यों से जोड़ना है। आज अभाविप देश का सबसे बड़ा छात्र संगठन है, जिसमें कुल 32,79,244 सदस्य संख्या है। अभाविप की महाविद्यालय ईकाइयों की संख्या कुल 7126 है।

देश के अन्य छात्र संगठनों की बात करें तो कांग्रेस के महासचिवों की रिपोर्ट के अनुसार दिसम्बर, 2010 में भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन एनएसयूआई की 26 राज्यों में छात्र सदस्यों की संख्या 8,82,483 थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ऐतिहासिक हार, और भ्रष्टाचार व घोटालों के चलते उसकी लोकप्रियता में गिरावट आई है, ऐसे में एनएसयूआई की संख्या में कमी होने के संकेत हैं। उसी तरह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) से संलग्न ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) की छात्र सदस्यों की संख्या 8 लाख के करीब बताया जाता है, पर यह संख्या इससे भी कम हो सकता है। 

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) युवा छात्र-छात्राओं को विविध प्रकल्पों के माध्यम से समाज के रचनात्मक कार्यों से जोड़ता है। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर संस्कार केन्द्र, वाचनालय, रक्तदान, रक्तदाता सूची, बुक बैंक, चिकित्सा शिविर, रोजगार प्रशिक्षण, सामाजिक व राष्ट्रीय विषयों पर सेमीनार व संगोष्ठि, अभ्यास मंडल जैसे विभिन्न प्रकार के प्रकल्प चलाए जाते हैं। इन प्रकल्पों के संपर्क में आने से विद्यार्थियों को समाज का दर्शन होता है तथा उन्हें समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा मिलाती है।

भारतीय शिक्षण मंडल

भारतीय शिक्षण मंडल 1969 से कार्यरत है। शिक्षा की रीति-नीति, पद्धति व पाठ्यक्रम के लिए रचनात्मक कार्य इसका लक्ष्य है। वर्त्तमान में देश के 220 जिलों में इकाइयों का गठन हुआ है।

राष्ट्रीय पुनरुत्थान के लिए प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सम्पूर्ण शिक्षा को भारतीय मूल्यों पर आधारित, भारतीय संस्कृति की जड़ों से पोषित तथा भारत केन्द्रित बनाने के लिए नीति, पाठ्यक्रम तथा पद्धति में भारतीयता लाना भारतीय शिक्षण मंडल का ध्येय है। इस ध्येय की प्राप्ति के लिए शिक्षण मंडल आवश्यक अनुसन्धान, प्रबोधन, प्रशिक्षण, प्रकाशन व संगठन का कार्य करता है।

शिक्षार्जन के उद्देश्य को व्यक्ति केन्द्रित से राष्ट्र केन्द्रित करना, भारतीय जीवन मूल्यों को वरीयता प्रदान करना, व्यवसायिक व अन्य भौतिक लक्ष्यों में भी राष्ट्रहित को ही प्राथमिकता देना यह शिक्षा का उद्देश्य बनें, इस दिशा में शिक्षण मंडल कार्य करता है। इस हेतु नीति निर्धारकों, संस्था चालकों, शिक्षकों के साथ ही व्यापक समाज प्रबोधन का कार्य मंडल कर रहा है।

अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ

अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ, पूर्व प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक के सम्पूर्ण राष्ट्र के शिक्षकों का राष्ट्रभक्त संगठन है। इसका प्रारंभ वर्ष 1988 में हुआ। यह अन्य शिक्षक संगठनों से भिन्न संगठन है जो शिक्षा, शिक्षक एवं समाज के हित में कार्य करता है। अब यह महासंघ 24 राज्यों के 35 राज्यस्तरीय संगठन तथा 56 विश्वविद्यालय संगठन महासंघ से सम्बद्ध हैं और 80 से अधिक विश्वविद्यालयों में इसका सम्पर्क है।

इस प्रकार संघ परिवार के शैक्षिक संगठन अपने योजनाबद्ध कार्यों से भारतीय जीवन मूल्यों को समाजाभिमुख करने में निरंतर प्रगति कर रहा है।

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