शनिवार, 7 मार्च 2015

Essay महिला सशक्तिकरण: क्या हैं चुनौतियाँ ?

महिला सशक्तिकरण: क्या हैं चुनौतियाँ ?

मिशेल बेकरिंग इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट -आईआरआई- में इंडोनेशिया की रेज़िडेंट कंट्री डायरेक्टर हैं। आईआरआई निष्पक्ष, गैरसरकारी संगठन है जो दुनियाभर में लोकतंत्र को बढ़ावा देने का काम कर रहा है। बेकरिंग 2005 में आईआरआई में आईं। उन्होंने मार्च और अप्रैल में नई दिल्ली, तिरुअनंतपुरम और कोलकाता की यात्रा की और विश्वविद्यालय समूहों, स्थानीय व्यावसायिक संगठनों, नागरिक संगठनों से जुड़ी महिलाओं और महिला मुद्दों के लिए काम करने वाली कार्यकर्ताओं से बातचीत की।

रक्तिमा बोस को दिए इंटरव्यू के चुनिंदा अंश: 

 

सार्वजनिक जीवन में भागीदारी की इच्छुक महिलाओं को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

वास्तव में कई तरह की चुनौतियां हैं। ऐतिहासिक तौर पर महिलाओं का सार्वजनिक जीवन में ज़्यादा प्रतिनिधित्व नहीं रहा है। कई बार इसके विरुद्ध सांस्कृतिक रुझान भी उन्हें रोकता है। इसके अलावा ऐसी चुनौतियां और बाधाएं हो सकती हैं जिनका सामना पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को ज़्यादा करना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर यदि हम राजनीतिक पदों के लिए महिलाओं के मुकाबले में आने के बारे में बात करें तो उन्हें कई तरह की चीज़ों पर विचार करना पड़ेगा। पहली बात है धन जुटाना, बहुत-सी महिलाओं के लिए जो पुरुषों के बराबर धन नहीं कमाती या फिर उनकी कमाई का मुख्य स्रोत नहीं है तो उनके लिए ऐसा करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। एक और मुद्दा जो हम अक्सर देखते हैं, वह आत्मविश्वास में कमी का है। उदाहरण के तौर पर यदि आप बराबर के कौशल वाले किसी पुरुष और महिला से सवाल करें कि ‘‘क्या आप कोई काम कर सकते हैं?’’ तो पुरुष का जवाब होगा, ‘‘बिल्कुल मैं इसे कर लूंगा। ‘‘लेकिन ज़्यादातर महिलाएं कहेंगीं, ‘‘मैं इसे कर सकती हूं लेकिन मुझे पहले कई चीज़ें सीखनी होंगीं।’’  अध्ययन के अनुसार पुरुष अवसरों को अपनी भविष्य की क्षमता के हिसाब से आंकते हैं, जबकि महिलाएं इस हिसाब से कि उन्होंने पूर्व में क्या उपलब्धियां अर्जित की हैं। इसके चलते बहुत-सी महिलाएं पूरी तरह ठहर जाती हैं, या फिर लीडरशिप भूमिकाओं के अपने प्रयासों में देरी कर देती हैं।

हम उन लोगों का नज़रिया कैसे बदल सकते हैं जो सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का विरोध करते हैं?

नज़रिया बदलने के दो तरीके हैं। पहला तो यह पुरानी कहावत है कि एक चित्र हज़ारों शब्दों के बराबर होता है। समाज में महिलाएं लीडरशिप वाले पदों पर जितना ही दिखाई देंगीं तो उनका वहां होना उतना ही कम अजीब लगेगा। दूसरी चीज़ यह है कि हमें लोगों को इस बात के बारे में शिक्षित करने की ज़रूरत है कि सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के लीडरशिप वाले पदों पर होने और उनके देश और समुदाय के लिए लाभ में आपसी नाता है। सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के लिए एक बड़ी चुनौती यह है कि उनका आकलन पुरुषों की अपेक्षा अलग तरीकों से किया जाता है। उदाहरण के लिए, उन पर अक्सर दोहरा बोझ होता है- पहली बात यह है कि उनका आकलन इस बात से होगा कि उन्होंने अपनी ड्यूटी किस तरह से निभाई। दूसरी तरफ उनका आकलन इस बात से होता है कि उनके चलते महिलाओं का प्रतिनिधित्व कितने अच्छे तरीके से हुआ और महिलाओं को कितना लाभ हुआ। हम इस चीज़ को समझने के लिए महिला लीडरों के साथ काम करते हैं, अपनी ड्यूटी को सक्षमता के साथ अंजाम देते हुए, साथ ही इस बात का भी ख्याल रखते हुए कि उन्हें सभी महिलाओं की तरफ से अभिव्यक्ति का अनूठा अवसर मिला है।

सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए उनके सशक्तिकरण में गैरलाभकारी संगठनों की क्या भूमिका हो सकती है?

गैरसरकारी संगठन वाकई कारगर हो सकते हैं। मुद्दों के प्रति समर्थन जुटाने, नेतृत्व विकास कार्यक्रम और महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने जैसी शैक्षिक पहल के कार्यक्रमों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। मैं नेटवर्किंग के महत्व पर भी बल देना चाहूंगीं। महिलाओं के सशक्तिकरण की सफल रणनीति बनाने के लिए आपको बहुत तरह के क्षेत्रों की महिलाओं के बीच गठजोड़ बनाना होगा- राजनीतिक दल या सरकार, गैरसरकारी संगठन, कारोबार, मीडिया, आदि। हर क्षेत्र का खास योगदान होता है और उसके सहयोगी भी। आईआरआई में विमेन्स डेमोक्रेसी नेटवर्क में हमारे कार्यक्रम की खास बात 13 देशों के चैप्टर थे। इन क्षेत्रों में महिलाओं के गठजोड़ ने एकसाथ मिलकर सार्वजनिक पदों पर महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए काम किया।

आपके अनुभव के हिसाब से महिलाओं के सशक्तिकरण से किसी देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में क्या मदद मिलती है?

अध्ययनों से दुनियाभर में यह साबित हुआ है कि नेतृत्वकारी पदों पर महिलाओं के होने से, मूल तौर पर सरकार में निर्वाचित पदों पर महिलाएं, आप देखेंगे कि भ्रष्टाचार में कमी आती है, सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी होती है, असाक्षरता कम होती है और शिक्षा पर खर्च में वृद्धि होती है। सिर्फ महिलाओं के लिए उल्लेखनीय लाभ नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए। हमने यह भी पाया है कि नेतृत्वकारी पदों पर ज़्यादा महिलाओं के होने से शांति और सुरक्षा के पहलुओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, यदि आप किसी ऐसे देश को देखें जो संघर्ष से जूझ रहा हो, तो शांति समझौतों में ज़्यादा महिलाओं के शामिल होने से ज़्यादा समावेशी और ज़्यादा टिकाऊ शांति समझौतों का रास्ता प्रशस्त होता है। मामलों के निपटारे में भी ज़्यादा महिलाओं के शामिल होने से उन महिलाओं को न्याय सुनिश्चित हो सकता है जो संघर्ष के दौरान पीडि़त रही हों। और आखिर में महिलाएं ‘‘महिलाओं के मुद्दे’’  समझे जाने वाले मुद्दों को ‘‘सामाजिक मुद्दों’’  के तौर देखती हैं कि ये मुद्दे किस तरह से परिवारों, समुदायों को प्रभावित करते हैं। यह बेहद महत्वपूर्ण है।

महिलाओं के सशक्तिकरण में वे कानून या नियम कितने कारगर हैं जो लैंगिक समानता की बात करते हैं?

ये बहुत मददगार हैं और इन पर जितना बल दिया जाए, कम है। मैंने अपने कॅरियर में देखा है कि उन महिलाओं के लिए कानून बहुत उपयोगी हैं जिनके पास उत्पीड़न या दमन की स्थिति में कोई और चीज़ सहारे के लिए नहीं होती। इससे उन्हें कोई ऐसी चीज़ मिलती है जो दिखाई देती है- कोई ऐसी चीज़ जिससे वे सिद्ध कर सकें कि वे समाज में बराबर की सदस्य हैं और उन्हें समान अधिकार और अवसर मिलने चाहिएं।

इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट किस तरह से महिलाओं के सशक्तिकरण के काम में मदद करता है?

आईआरआई गैरलाभकारी और निष्पक्ष संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1983 में हुई। आईआरआई का उद्देश्य मुद्दों पर आधारित राजनीतिक दलों, सक्रिय नागरिकों और पारदर्शी सरकारी संस्थाओं और उत्तरदायी सरकारी अधिकारियों की मदद के जरिये दुनियाभर में आज़ादी और लोकतंत्र को बढ़ावा देना है। हमारे काम का एक अहम पहलू हाशिए पर मौजूद समूहों- खासकर महिलाएं- की राजनीतिक प्रक्रिया में भूमिका बढ़ाना है। आईआरआई ने पिछले 30 सालों के दौरान दुनियाभर में महिलाओं को प्रशिक्षित करने का काम किया है। वर्ष 2006 में इसने विमेन्स डेमोक्रेसी नेटवर्क संगठन की शुरुआत की जो राजनीति में, नेतृत्व वाले पदों पर, निर्वाचित सार्वजनिक पदों पर महिलाओं की मौजूदगी बढ़ाने के लिए कार्यक्रम संचालित करता है। यह संगठन इस समय 61 देशों में सक्रिय है।

विद्यार्थी संगठनों में महिलाओं की ज़्यादा भागीदारी सुनिश्चित करना कितना महत्वपूर्ण है? जल्दी शुरुआत करने से किस तरह मदद मिलती है?

महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में विद्यार्थी संगठन एक महत्वपूर्ण जरिया हैं। वे संरचनात्मक संगठनों में भागीदारी, अनुभव हासिल करने और नेतृत्व के पदों पर काम करने के शुरुआती अवसर उपलब्ध कराते हैं। यह देखना दिलचस्प है कि अमेरिका जैसे बहुत-से देशों में पुरुषों की अपेक्षा ज़्यादा महिलाएं डिग्री हासिल कर रही हैं, लेकिन विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी संगठनों में एक-तिहाई से भी कम महिला प्रेज़िडेंट हैं। हमें महिलाओं को लगातार प्रोत्साहित करना है, विशेषकर जब वे युवा हों, कि वे नेतृत्व के पदों पर काम करें। यह शुरुआत करने के लिए बढि़या जगह है।

महिला लीडरों की भावी पीढ़ी को तैयार करने में परामर्शकों का कितना महत्व है?

मुझे लगता है कि यह बेहद महत्वपूर्ण है। जीवन प्रगति का क्रम है। एक परामर्शक आपको प्रोत्साहित करेगा और आपके आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करेगा। वे अपनी सफलताओं और गलतियों से सीखते हुए आपको गड़बडि़यों से बचाने में भी मदद कर सकते हैं। इसके अलावा यह ऐसा तरीका है जिससे आप कई चीज़ों के बारे में अपना नज़रिया व्यापक बनाने के लिए नए कौशल सीख सकते हैं। परामर्शक मुद्दों और समस्याओं को नए नज़रियों से देखने में मदद करने में वाकई अच्छे साबित होते हैं।

एक चीज़ जो मैं हमेशा सोचती हूं, वह यह है कि विमेन्स डेमोक्रेसी नेटवर्क की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह पूरा डिविजन परामर्श के महत्व के आधार पर तैयार किया गया है। नेटवर्क ने अलग-अलग देशों की महिलाओं को एकसाथ लाने का महत्व समझा जिससे कि वे महिला सशक्तिकरण के लिए श्रेष्ठ तौरतरीकों को साझा कर सकें और अन्य महिलाएं इन उल्लेखनीय उदाहरणों से लाभान्वित हो सकें  और अपने देश में इनका उपयोग कर सकें। परामर्श का कार्य एक बड़ी ज़िम्मेदारी है, यह दोतरफा चलने वाली प्रक्रिया है। मैं सोचती हूं कि हममें से जो भी अपने लक्ष्य हासिल करने में सफल रही हैं, उन्हें खुद को मदद करने वालों को धन्यवाद ज्ञापित करने के तौर पर अन्य महिलाओं के परामर्शक के तौर पर सक्रिय होना चाहिए। 

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